Friday, June 19, 2015

दिल्ली सरकार की भक्षक और केन्द्र सरकार की रक्षक बन गयी है दिल्ली पुलिस

कभी कूड़े पर राजनीती हो रही थी, अब राजनीती में कूड़ा हो गया है यहाँ;
देश का दिल कहते हैं इसको , ये है दिल्ली मेरी जान। 

दिल्ली की ७० विधानसभा सीटों में से ६७ सीटों का प्रचंड बहुमत पाकर इतिहास बनाने वाली और सत्ता में कदम रखने वाली आम आदमी पार्टी को ऐसे दिन की कभी कल्पना भी नहीं होगी, पर पिछले कुछ दिनों से जो दिल्ली में हो रहा है उससे कौन वाकिफ नहीं है। जनता की भलाई के नाम पर जनता की ही आवाज को दबाया जा रहा है और सब अपनी-अपनी राजनीती की रोटियां सेकने में लगे हुए हैं। जनता के नाम पर सब अपने अधिकारों की लड़ाई कर रहे हैं और जनता सिर्फ तमाशगीन बनी बैठी है। दो साल पहले अस्तित्व में आई पार्टी  हर दिन एक नए  घिर जाती है, शायद इतने विवाद तो पुरानी पार्टियों में इतने सालों में नहीं हुए या यूँ कहें की उजागर नहीं होने दिए पर। पर हर समय जनता के नाम पर अपनी राजनीती करने वाले नेता शायद भूल जाते हैं कि ५ साल बाद उन्हें फिर जनता के बीच ही जाना है।

दिल्ली में केजरीवाल सरकार के पीछे पहले केंद्र फिर उप-राज्यपाल और अब दिल्ली पुलिस हाथ धो कर पीछे पड़ी हुई है। मुझे ये कहते समय हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी का दिल्ली चुनाव से पहले दिया वो भाषण याद आता है जिसमें उन्होंने कहा था कि ' दिल्ली को स्थिर बनाना है तो केंद्र और राज्य की सरकार  एक ही पार्टी की होनी चाहिए ' , पर जनता ने उनके इस कथन को सिरे से नकार दिया और दिल्ली में स्थिर सरकार बनाने के लिए केजरीवाल को प्रचंड बहुमत दी। पर शायद जनता उस भाषण के पीछे छुपे भाव को नहीं समझ पायी और कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली की जनता उसकी कीमत चुका  रही है। आजतक हमने इतने सालों में उप-राज्यपाल का दिल्ली में इतना हस्तछेप नहीं देखा जितना इन ३-४ महीनों में देखने को मिल रहा है।

सब अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं पर जनता के अधिकार का क्या। अब दिल्ली पुलिस भी केजरीवाल सरकार के मंत्रियों के पीछे पड़ी हुई है और २१ लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने वाली है, उनका कहना है कि इन मामलों में जल्द से जल्द कार्यवाही करने की जरुरत है। मैं ये नहीं कहता की चार्जशीट मत बनाओ या कार्यवाही नहीं होनी चाहिए पर क्या दिल्ली पुलिस को ये ज्ञात नहीं है कि हमारे लोकसभा और राज्यसभा में २०० से ऊपर सदस्य ऐसे हैं जिनपर न जाने कब से अपराधिक मामले दर्ज हैं और कोई चार्जशीट बनाने की जल्दी नहीं है।
फिर क्यों सबको दिल्ली सरकार के मामले में ही अपना फ़र्ज़ और अधिकार याद आता है। मुझे किसी राजनीतिक पार्टी से कोई हमदर्दी नहीं है, पर जिस तरह से दिल्ली में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ रही हैं उससे जो भी इस देश का जागरूक नागरिक है वो कहीं न कहीं आहत जरूर होता होगा। जिस तेज़ी के साथ जीतेन्द्र तोमर के केस में कार्यवाही हुई है उससे हर नागरिक का सीना जरूर चौड़ा होता है कि हमारे देश की पुलिस कितनी सक्षम है पर क्यों केंद्र सरकार के नेताओं पर उसी तेज़ी से कार्यवाही नहीं की जा रही।  ये दोहरा पैमाना शक करने पर मज़बूर करता है कि दिल्ली पुलिस भी राजनीती से प्रेरित होकर काम कर रही है।

गलतियां सब से होती हैं पर केजरीवाल ऐसे पहले नेता हैं जो अपनी गलतियां सबसे पहले सुधारते हैं और फिर लोगों से माफ़ी भी मांगते हैं, और यही कारण है कि मोदी लहर के बावजूद दिल्ली की जनता ने उन्हें अपनी सर-आँखों पर बैठाया। अभी कुछ दिन पहले ही जब दिल्ली की सड़को पर कचरे का ढेर लगा था तब  केजरीवाल सरकार ने कुछ गलतियां की जैसे हड़ताल ख़त्म होने के बाद पार्टी के लोग सफाई करने सड़कों पर उतरे जिसमें कहीं न कहीं राजनीती की बू आती है क्योंकि अगर सिर्फ जनता की भलाई उनका उद्देश्य होता तो १२ दिनों तक कचरे का अम्बार नहीं लगता बल्कि पहले ही दिन से उन्हें अपने कार्यकर्ताओं को सफाई के लिए लगा देना चाहिए था। पर जनता ने ये भी देखा की जो उप-राज्यपाल हमेशा अपने अधिकारों की दुहाई देते नहीं थकने इस पूरे प्रकरण में कहीं नज़र नहीं आये , तो जनता समझदार है कि  कौन उनके साथ खड़ा है और कौन अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहा है। तोमर प्रकरण में भी सब केजरीवाल पर ऊँगली उठा रहे हैं पर जैसे ही मामला साफ़ हुआ केजरीवाल ने उसे हटाने में देरी नहीं की पर जिस तरह से बीजेपी दोषियों को बचाने में लगी हुई है ये अब किसी से छुपा नहीं है।

दिल्ली पुलिस जो आज अपने फर्ज की दुहाई दे रहा है और सिर्फ केजरीवाल सरकार के पीछे पड़ी है शायद भूल गयी है "मनोज वशिष्ट एनकाउंटर " जिसमें उसकी स्पेशल टीम शक के घेरे में है।  चार जाँच कमिटी  बन गयी है पर मामला कहाँ दबा पड़ा है ये न हमारे गृहमंत्री  पाएंगे न दिल्ली पुलिस।  क्यों उस रेस्टोरेंट में इतने कैमरे होने के बावजूद सिर्फ वही वीडियो सार्वजानिक किया गया जिसमें कुछ साफ़ नहीं था।  अगर दिल्ली पुलिस का ऐसा दोहरा पैमाना रहेगा तो कैसे कोई देश के कानून  विश्वास करेगा।

अगर सबको जनता की इतनी फ़िक्र है तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा क्यों नहीं दिया जा रहा जबकि दोनों सरकारों के पास पूर्ण बहुमत है।  एक नयी  पार्टी जिसका मुद्दा भ्रस्टाचार हटाना है क्यों उसके हाथ बांधे जा रहे हैं। सब संविधान की दुहाई देते हैं  पर कोई ये क्यों नहीं समझना चाहता कि संविधान लोगों की भलाई के लिए बना है, अपने अधिकारों की लड़ाई  नहीं। अगर कोई नयी शुरुआत करना चाहता है और जनता भी जब उसके साथ है तो फिर ऐसी अड़चने पैदा करके सब जनता से किस बात का बदला ले रहे हैं। ऐसा करके उनकी सोच यही बताती है की एक बार बहुमत मिल गयी फिर अगले ५ साल तक जनता की क्या जरुरत है, पर सब ये भूल जाते हैं जनता ही जनार्दन है और वो सब देख रही है बस अंतर इतना है पहले कोई आवाज नहीं उठाता था पर अब धीरे-धीरे देश बदल रहा है। अगर इसे आपलोग विकास की राजनीती कहते हैं तो शायद ही कोई होगा जो ऐसा विकास देखना चाहता होगा। नेता जनता को भूली तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा पर जिस दिन जनता नेता को भूल गयी वो सीधे धरातल पर गिरेगा।

मैं ये जानता हूँ कि इस लेख के बाद सब बोलेंगे की मैं आम आदमी पार्टी से प्रेरित हूँ , पहले लेख के बाद किसी ने मुझे फेसबुक पर कहा की कांग्रेसी हो पर मैं किसी राजनितिक पार्टी का पक्षदार नहीं हूँ।  हमारे देश की यही विडम्बना है की यहाँ जनता को आवाज उठाने का हक़ नहीं है सिर्फ राजनेता ही आवाज उठा सकते हैं और मैं इसी सोच को बदलना चाहता हूँ और तब-तब मेरी आवाज उठेगी जब-जब जनता के साथ धोका होगा।

बहुत मुश्किल हैं जिंदगी के ये रास्ते, यहाँ हर कदम पर काँटे ही काँटे मिलेंगे;
अगर दिल में अरमान हो कुछ कर गुजरने का तो फूल भी तो काँटो में ही खिलेंगे। 

                                                   

  जय हिन्द !!!!!


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