पौधे को सीँचा नहीं तो पेड़ कहाँ से आएगा, पेड़ न बन पाया तो फल कैसे दे पायेगा;
रह जाएंगे पीछे हमसब और वक़्त निकलता जाएगा, अब भी न कुछ कर पाये तो ये देश बँजर हो जाएगा।
आज जब पूरा देश मन की शांति के लिए विश्व योग दिवस बना रहा है पता नहीं क्यों मेरा मन कहीं न कहीं अशान्त है। ऐसा नहीं है कि मैं योग के खिलाफ हूँ या ये कहना चाहता हूँ की योग से मन की शान्ति नहीं आती, पर मेरे मेरे मन में कुछ ऐसे सवाल उठ रहे हैं जो किसी भी मन को अशान्त करने के लिए काफी होगा और जैसे जैसे आप इस लेख को पढ़ेंगे तो कहीं न कहीं आप भी सोचेंगे की क्या हमारी शांति के लिए योग काफी है। जब तक हमारे देश में शान्ति नहीं आएगी, कैसे कोई भी इंसान जिसे अपने देश से प्रेम है शांत हो सकता है। पिछले एक महीने से हर तरफ योग का प्रचार चल रहा है, योग पर राजनीती हो रही है और सब अपना-अपना तर्क रख रहे हैं और तो और कुछ लोग तो इसको मजहब का रंग देने से भी नहीं चूक रहे हैं ये भी कहीं न कहीं चिंता का विषय तो है। आज जब दिल्ली के राजपथ पर एक साथ योग करके भारत गिनीज़ बुक में शायद अपना नाम भी दर्ज करवा लेगा (ये लेख योग दिवस शुरू होने से कुछ घंटे पहले लिखा है इसीलिए शायद का प्रयोग करना पड़ा ) तो हम सब बहुत गौरवान्वित महसूस करेंगे और हमारे प्रधानमंत्री के नाम एक उपलब्धि भी जुड़ जायेगी क्यूँकि ये उनके प्रस्ताव के कारण ही संभव हुआ है की पूरा विश्व आज योग दिवस बना रहा है। अब आप सोच रहे होंगे तो फिर चिंता का कारण क्या है? पर मेरी चिंता योग को लेकर नहीं है।
चिंता का कारण है जिस प्रकार हमारे मंत्री अपने सारे जरुरी काम को महत्व न देकर सिर्फ योग का प्रचार कर रहे हैं, जिस प्रकार योग पर भी राजनीती हो रही है और जहाँ ध्यान देने की जरुरत है उसका कोई जिक्र भी नहीं करता, चाहे वो पक्षधारी पार्टी हो या विपक्ष । जब सरकार ने आयुष मंत्रालय बनाया है तो क्यों बाकि सब को इसका प्रचार करने की जरुरत है। क्या आज हमारे देश में सिर्फ योग ही सबसे महत्वपूर्ण विषय है जब हमारे देश में कितने लोग ठीक से अपना पेट भी नहीं भर पा रहे हैं। क्या योग करके उनके मन को शान्ति मिलेगी ये मैं सबसे पूछना चाहता हूँ। बहुत सारे विषय ऐसे हैं जिसपर ध्यान किसी का भी नहीं है और उनमे से एक विषय है बालमजदूरी जिसपर आज मैं रौशनी डालना चाहता हूँ और सरकार और बाकी राजनेताओं का ध्यान केंद्रित करना चाहता हूँ। क्या इसपर किसी को ध्यान देने की जरुरत नहीं है ?
आज हम गर्व से कहते हैं कि हम आज़ाद भारत में रहते हैं , पर क्या सिर्फ अपनी आज़ादी देश को आज़ाद कहने के लिए काफी है जबकि आज भी हमारे देश में बालमजदूरी का प्रचलन है और कहीं-कहीं तो बंधुआ मजदूरी का भी प्रचलन है। एक साल पहले हमारे देश के कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरुस्कार दिया गया क्यूंकि उन्होंने अपना सारा जीवन बालमजदूरी को हटाने के लिए समर्पित कर दिया, पर कुछ दिनों तक उनका नाम हर चैनल पर दिखाने के बाद सब उनको आज भूल से गए हैं। कितने लोग हैं जो उनके काम को आगे बढ़ाने के लिए आज आवाज उठाते हैं? क्या हमारी सरकार का या दूसरे नेताओं का फ़र्ज़ नहीं की उनके इस योगदान में उनका साथ दे? क्या ये सिर्फ उनकी जिम्मेवारी है कि वो अपना जीवन इसमें झोंक दें ?
बालमजदूरी एक ऐसा अभिशाप है जो हमारे देश के भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है और सिर्फ एक आदमी के योगदान से उसे नहीं मिटाया जा सकता। उसके लिए सरकार को और हमलोगों को मिलकर काम करना पड़ेगा।अब आपके मन में प्रश्न उठेगा कि हम इसमें क्या कर सकते हैं, सब कैलाश जी की तरह अपना जीवन तो इसमें नहीं लगा सकते, तो आगे आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा। पर ये समझाने से पहले मैं एक ऐसा उदहारण देना चाहूंगा जो हमसब के जीवन में हमेशा आता है पर हम कभी उसको गहराई से सोच नहीं पाते।
थोड़ी देर के लिए सोचिये आप अपने दोस्तों के साथ कहीं जा रहे हैं और आपका चाय पीने का मन करता है, आप किसी चाय की दूकान पर रुकते हैं और चाय आर्डर करते हैं। दूकान में से एक ११-१२ साल का बच्चा आता है और आपको चाय देता है , आप चाय पीते हैं और बिल देकर अपने रास्ते पर आगे निकल जाते हैं ( ये वाक्या हर आदमी के जीवन में अक्सर होता है ) और अपनी मस्ती में खो जाते हैं। अब मैं सबसे पूछना चाहूंगा कि यहाँ आपने कोई गलती की या नहीं ? मैं कहता हूँ कि अनजाने में ही सही पर आपने बहुत बड़ी गलती कर दी क्यूंकि आपने कहीं न कहीं बालमजदूरी को बढ़ावा दिया। इस गलती के लिए आपको सजा तो नहीं होगी पर अनजाने में आपने देश के भविष्य को जरूर बिगाड़ दिया जिसकी कीमत हमारा देश चुकाएगा। ये गलतियां हमसे इसलिए होती हैं क्यूंकि हम आज इतने मतलबी हो गए हैं की दूसरों की चिंता करने की सोच कहीं मर सी गयी है। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि हम अपने रोज़मर्रा के काम को छोड़कर बालमजदूरी हटाने में लग जाएँ , पर हमारी थोड़ी सी जागरूकता हमें ऐसी गलतियां करने से बचा सकती हैं और हमारे देश का भविष्य बना सकता हैं। तो कैसे बचेंगे हम ऐसी गलतियां करने से और कैसे मिटायेंगे बालमजदूरी ये सोच रहे होंगे आप, पर मेरे ख्याल में बहुत आसान है ये और आपके काम पर भी असर नहीं पड़ेगा और आपके दिल को एक सुकून की अनुभूति होगी।
- कभी ऐसी दूकान से सामान न लें जिसमे बच्चो से काम लिया जा रहा हो और दूसरों को भी न करने दें अगर आपकी नज़र जाए। ऐसा करने से जब उस दूकान के मालिक को पता चलेगा तो वो खुद ही बच्चे से काम नहीं करवाएगा क्यूंकि हर दुकानदार मुनाफे के लिए काम करता है और वो कभी अपना नुकसान नहीं चाहेगा।
- अगर आपके घर या ऑफिस के आस-पास कोई बच्चे से काम लेता है तो आप किसी भी संस्था में (जो बालमजदूरी के विरोध में काम करता हो) जानकारी दे सकते हैं। आजकल इंटरनेट के ज़माने में बहुत आसान है ये और इससे आपके काम में कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा नाही आपका समय व्यर्थ होगा।
- आजकल बहुत सारे घरों में अमूमन देखा जाता है की छोटे बच्चों को साफ़-सफाई के काम के लिए रखा जाता है। अगर आपके या आपके दोस्तों के घर पर ऐसा कुछ है तो इसका विरोध जरूर करें और उनको बालमजदूरी के विरोध में बने कानून की जानकारी भी दें ताकि उनके दिल में थोड़ा डर बैठे।
अब मैं अपनी सरकार से और बाकी नेताओं से एक अपील करना चाहता हूँ कि हमारे देश में आज ऐसे-ऐसे काम पड़े हैं जिनपर ध्यान देने की ज्यादा जरुरत है। आज आप योग करवाकर विश्व रिकॉर्ड तो जरूर बना लेंगे पर देश की शान्ति योग से नहीं आएगी। अगर हमारे प्रधानमंत्री यूनाइटेड नेशन में बालमजदूरी के मुद्दे पर आवाज उठाते और सारे विश्व को आज बालमजदूरी हटाने का दिवस बनाने के लिए प्रेरित करते तो ज्यादा बेहतर होता और इससे उनको और ख्याति मिलती और तो और इसपर किसी नेता या दल को राजनीती करने का मौका भी नहीं मिलता। जिस प्रकार आज लाखों लोग एक साथ योग कर रहे हैं अगर वैसे ही सब बस एक-एक बालमजदूर मुक्त कराते तो हमारे देश को भविष्य में लाखों लोगों का योगदान मिलता और देश की तरक्क़ी होती। इससे बड़ा और बेहतर विश्व रिकॉर्ड और क्या हो सकता है। आज जितने लोगों ने एक साथ योग किया उसमे से कल कितने करेंगे इसकी गारंटी किसी के पास नहीं है पर अगर आप लाखों बचपन को बचाते तो उनकी आज़ादी पूरी जिंदगी के लिए होती। फिर देश को भी शान्ति मिलती और मन को भी। ये काम तो कोई योग गुरु भी कर सकता था और आज आप ऐसा करके उनका बाजार बढ़ा रहे हैं जबकि आपको देश में बहुत काम करने हैं जो योग से ज्यादा जरुरी हैं क्यूंकि जब आप बचपन बचाएंगे तभी देश में अच्छे दिन आएंगे। यही कारण है कि इस विषय को उठाने के लिए मैंने आज का दिन चुना और अगर अब भी सरकार नहीं समझी तो पता नहीं कितने और कैलाश सत्यार्थी जैसे आदमी को अपना जीवन समर्पित करना पड़ेगा।
बचपन का है मूल्य बड़ा, मत करो नज़रअंदाज़ इन्हें ;
देश का भविष्य हैं ये, मत होने दो बर्बाद इन्हें।
जय हिन्द !!!!
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