Sunday, June 28, 2015

"मन की बात ---पहले जनता की आवाज "


आज हमारे नरेंद्र मोदी फिर "मन की बात" करने जा रहे हैं। पर मेरे मन भी कुछ बात आ रही है वो मैं आपको चंद पंक्तियों के जरिये सुनाना चाह रहा हूँ। पता नहीं ये सरकार तक पहुंचे या नहीं पर आप तक तो अवश्य पहुँचा सकता हूँ।


बिना सुने तुम जन की बात , करते हो तुम अपने "मन की बात " ,
नारा देकर अच्छे दिन का, भूल गए तुम करना विकास ;

जनता जब कुछ पूछती है, मौनव्रत अपनाते हो ,
राजे धर्म के चक्कर में, राज धर्म भूल जाते हो ;

तुम्हारे आँगन की तुलसी पर भी उठ रहे कई सवाल,
सुषमा पर हो रहे हैं बहुत बड़े-बड़े विवाद ;

 अब भी तुम उनके साथ खड़े हो , अपनी ही बातों पर अड़े हो ;
जनता से वो बोलो तुम, जनता चाहती है जवाब ;

वक्त निकलता जा रहा है, पर नहीं मिट रहा है भ्रस्टाचार ,
देकर तुम सिर्फ अपनों का साथ , कैसे करोगे सबका विकास ;

वोट मांगने जब जाते थे, सबको तुम बहुत भाते थे ,
अच्छे दिन का नारा देकर , जनता के दिल में घुस जाते थे ;

अब भी नहीं अगर समझ पाये तो , टूटेगा फिर जनता का विश्वास,
टूट गया जो ये विश्वास, छूठ जाएगा फिर जनता का साथ ;

'मन की बात' करने से पहले  , सुन लो पहले जनता की आवाज ;
नहीं समझे अब भी तो , मन में ही करते रहना फिर ये जो है 'मन की बात'।। 

                                                                                (शशिकांत )


                               जय हिन्द !!!!!!!
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Sunday, June 21, 2015

बचपन बचाओ , देश का भविष्य बनाओ

पौधे को सीँचा नहीं तो पेड़ कहाँ से आएगा, पेड़ न बन पाया तो फल कैसे दे पायेगा;
रह जाएंगे पीछे हमसब और वक़्त निकलता जाएगा, अब भी न कुछ कर पाये तो ये देश बँजर हो जाएगा। 
 

आज जब पूरा देश मन की शांति के लिए विश्व योग दिवस बना रहा है पता नहीं क्यों मेरा मन कहीं न कहीं अशान्त है। ऐसा नहीं है कि मैं योग के खिलाफ हूँ या ये कहना चाहता हूँ की योग से मन की शान्ति नहीं आती, पर मेरे मेरे मन में कुछ ऐसे सवाल उठ रहे हैं जो किसी भी मन को अशान्त करने के लिए काफी होगा और जैसे जैसे आप इस लेख को पढ़ेंगे तो कहीं न कहीं आप भी सोचेंगे की क्या हमारी शांति के लिए योग काफी है। जब तक हमारे देश में शान्ति नहीं आएगी, कैसे कोई भी इंसान जिसे अपने देश से प्रेम है शांत हो सकता है। पिछले एक महीने से हर तरफ योग का प्रचार चल रहा है, योग पर राजनीती हो रही है और सब अपना-अपना तर्क रख रहे हैं और तो और कुछ लोग तो इसको मजहब का रंग देने से भी नहीं चूक रहे हैं ये भी कहीं न कहीं चिंता का विषय तो है।  आज जब दिल्ली के राजपथ पर एक साथ योग करके भारत गिनीज़ बुक में शायद अपना नाम भी दर्ज करवा लेगा (ये लेख योग दिवस शुरू होने से कुछ घंटे पहले लिखा है इसीलिए शायद का प्रयोग करना पड़ा ) तो हम सब बहुत गौरवान्वित महसूस करेंगे और हमारे प्रधानमंत्री के नाम एक उपलब्धि भी जुड़ जायेगी क्यूँकि ये उनके प्रस्ताव के कारण ही संभव हुआ है की पूरा विश्व आज योग दिवस बना रहा है। अब आप सोच रहे होंगे तो फिर चिंता का कारण क्या है? पर मेरी चिंता योग को लेकर नहीं है। 

चिंता का कारण है जिस प्रकार हमारे मंत्री अपने सारे जरुरी काम को महत्व न देकर सिर्फ योग का प्रचार कर रहे हैं, जिस प्रकार योग पर भी राजनीती हो रही है और जहाँ ध्यान देने की जरुरत है उसका कोई जिक्र भी नहीं करता, चाहे वो पक्षधारी पार्टी हो या विपक्ष  । जब सरकार ने आयुष मंत्रालय बनाया है तो क्यों बाकि सब को इसका प्रचार करने की जरुरत है। क्या आज हमारे देश में सिर्फ योग ही सबसे महत्वपूर्ण विषय है जब हमारे देश में कितने लोग ठीक से अपना पेट भी नहीं भर पा रहे हैं।  क्या योग करके उनके मन को शान्ति मिलेगी ये मैं सबसे पूछना चाहता हूँ। बहुत सारे विषय ऐसे हैं जिसपर ध्यान किसी का भी नहीं है और उनमे से एक विषय है बालमजदूरी जिसपर आज मैं रौशनी डालना चाहता हूँ और सरकार और बाकी राजनेताओं का ध्यान केंद्रित करना चाहता हूँ। क्या इसपर किसी को ध्यान देने की जरुरत नहीं है ?

आज हम गर्व से कहते हैं कि हम आज़ाद भारत में रहते हैं , पर क्या सिर्फ अपनी आज़ादी देश को आज़ाद कहने के लिए काफी है जबकि आज भी हमारे देश में बालमजदूरी का प्रचलन है और कहीं-कहीं तो बंधुआ मजदूरी का भी प्रचलन है। एक साल पहले हमारे देश के कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरुस्कार दिया गया क्यूंकि उन्होंने अपना सारा जीवन बालमजदूरी को हटाने के लिए समर्पित कर दिया, पर कुछ दिनों तक उनका नाम हर चैनल पर दिखाने के बाद सब उनको आज भूल से गए हैं। कितने लोग हैं जो उनके काम को आगे बढ़ाने के लिए आज आवाज उठाते हैं? क्या हमारी सरकार का या दूसरे नेताओं का फ़र्ज़ नहीं की उनके इस योगदान में उनका साथ दे? क्या ये सिर्फ उनकी जिम्मेवारी है कि वो अपना जीवन इसमें झोंक दें ?

बालमजदूरी एक ऐसा अभिशाप है जो हमारे देश के भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है और सिर्फ एक आदमी के योगदान से उसे नहीं मिटाया जा सकता। उसके लिए सरकार को और  हमलोगों को मिलकर काम करना पड़ेगा।अब आपके मन में प्रश्न उठेगा कि हम इसमें क्या कर सकते हैं, सब कैलाश जी की तरह अपना जीवन तो इसमें नहीं लगा सकते, तो आगे आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।  पर ये समझाने से पहले मैं एक ऐसा उदहारण देना चाहूंगा जो हमसब के जीवन में हमेशा आता है पर हम कभी उसको गहराई से सोच नहीं पाते। 

थोड़ी देर के लिए सोचिये आप अपने दोस्तों के साथ कहीं जा रहे हैं  और आपका चाय पीने का मन करता है, आप किसी चाय की दूकान पर रुकते हैं और चाय आर्डर करते हैं। दूकान में से एक ११-१२ साल का बच्चा आता है और आपको चाय देता है , आप चाय पीते हैं और बिल देकर अपने रास्ते पर आगे निकल जाते हैं ( ये वाक्या हर आदमी के जीवन में अक्सर होता है ) और अपनी मस्ती में खो जाते हैं।  अब मैं सबसे पूछना चाहूंगा कि यहाँ आपने कोई गलती की या नहीं ? मैं कहता हूँ कि अनजाने में ही सही पर आपने बहुत बड़ी गलती कर दी क्यूंकि आपने कहीं न कहीं बालमजदूरी को बढ़ावा दिया। इस गलती के लिए आपको सजा तो नहीं होगी पर अनजाने में आपने देश के भविष्य को जरूर बिगाड़ दिया जिसकी कीमत हमारा देश चुकाएगा।  ये गलतियां हमसे इसलिए होती हैं क्यूंकि हम आज इतने मतलबी हो गए हैं की दूसरों की चिंता करने की सोच कहीं मर सी गयी है। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि हम अपने रोज़मर्रा के काम को छोड़कर बालमजदूरी हटाने में लग जाएँ , पर हमारी थोड़ी सी जागरूकता हमें ऐसी गलतियां करने से बचा सकती हैं और हमारे देश का भविष्य बना सकता हैं। तो कैसे बचेंगे हम ऐसी गलतियां करने से और कैसे मिटायेंगे बालमजदूरी  ये सोच रहे होंगे आप, पर मेरे ख्याल में बहुत आसान है ये और आपके काम पर भी असर नहीं पड़ेगा और आपके दिल को एक सुकून की अनुभूति होगी। 


  1. कभी ऐसी दूकान से सामान न लें जिसमे बच्चो से काम लिया जा रहा हो और दूसरों को भी न करने दें अगर आपकी नज़र जाए। ऐसा करने से जब उस दूकान के मालिक को पता चलेगा तो वो खुद ही बच्चे से काम नहीं करवाएगा क्यूंकि हर दुकानदार मुनाफे के लिए काम करता है और वो कभी अपना नुकसान नहीं चाहेगा। 
  2. अगर आपके घर या ऑफिस के आस-पास कोई बच्चे से काम लेता है तो आप किसी भी संस्था में (जो बालमजदूरी के विरोध में काम करता हो) जानकारी दे सकते हैं। आजकल इंटरनेट के ज़माने में  बहुत आसान है ये और इससे आपके काम में कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा नाही आपका समय व्यर्थ होगा।  
  3. आजकल बहुत सारे घरों में अमूमन देखा जाता है की छोटे बच्चों को साफ़-सफाई के काम के लिए रखा जाता है।  अगर आपके या आपके दोस्तों के घर पर ऐसा कुछ है तो इसका विरोध जरूर करें और उनको बालमजदूरी के विरोध में बने कानून की जानकारी भी दें ताकि उनके दिल में थोड़ा डर बैठे। 
ऐसे बहुत सारे छोटे-छोटे उपाय हैं जिसको अपनाकर आप एक अनजाने अपराध से तो बचेंगे ही साथ में देश की तरक्की में योगदान भी देंगे। ऐसा करके दिल को एक अच्छा एहसास भी होगा और अगर सब जागरूकता दिखाएंगे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे देश से बालमजदूरी पूरी तरह ख़त्म हो जायेगी। फिर हमें सिर्फ कैलाश जी जैसे आदमी की जरुरत नहीं रहेगी जो अपना पूरा जीवन  किसी कार्य में समर्पित करे और हम बस बैठ कर देखें। जब एक अकेला आदमी इतना कुछ कर सकता है तो अगर सब मिलकर थोड़ा-थोड़ा योगदान भी देंगे तो बहुत कुछ कर सकते हैं क्यूंकि ये तो सब जानते हैं की "एकता में बल है"। 

अब मैं अपनी सरकार से और बाकी नेताओं से एक अपील करना चाहता हूँ कि हमारे देश में आज ऐसे-ऐसे काम पड़े हैं जिनपर ध्यान देने की ज्यादा जरुरत है। आज आप योग करवाकर विश्व रिकॉर्ड तो जरूर बना लेंगे पर देश की शान्ति योग से नहीं आएगी। अगर हमारे प्रधानमंत्री यूनाइटेड नेशन में बालमजदूरी के मुद्दे पर आवाज उठाते और सारे विश्व को आज बालमजदूरी हटाने का दिवस बनाने के लिए प्रेरित करते तो ज्यादा बेहतर होता और इससे उनको  और ख्याति मिलती और तो और इसपर किसी नेता या दल को राजनीती करने का मौका भी नहीं मिलता।  जिस प्रकार आज लाखों लोग एक साथ योग कर रहे हैं अगर वैसे ही सब बस एक-एक  बालमजदूर मुक्त कराते तो हमारे देश को भविष्य में लाखों लोगों का योगदान मिलता और देश की तरक्क़ी होती। इससे बड़ा और बेहतर विश्व रिकॉर्ड और क्या हो सकता है।  आज जितने लोगों ने एक साथ योग किया उसमे से कल कितने करेंगे इसकी गारंटी  किसी के पास नहीं है पर अगर आप लाखों बचपन को बचाते तो उनकी आज़ादी पूरी जिंदगी के लिए होती। फिर देश को भी शान्ति मिलती और मन को भी। ये काम तो कोई योग गुरु भी कर सकता था और आज आप ऐसा करके उनका बाजार बढ़ा रहे हैं जबकि आपको देश में बहुत काम करने हैं जो योग से ज्यादा जरुरी हैं क्यूंकि जब आप बचपन बचाएंगे तभी देश में अच्छे दिन आएंगे। यही कारण है कि इस विषय को उठाने के लिए मैंने आज का दिन चुना और अगर अब भी सरकार नहीं समझी तो पता नहीं कितने और कैलाश सत्यार्थी जैसे आदमी को अपना जीवन समर्पित करना पड़ेगा। 

बचपन का है  मूल्य बड़ा, मत करो नज़रअंदाज़ इन्हें ;

                                    देश का भविष्य हैं ये, मत होने दो बर्बाद इन्हें।                                                                         

                                                           जय हिन्द !!!!


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Friday, June 19, 2015

दिल्ली सरकार की भक्षक और केन्द्र सरकार की रक्षक बन गयी है दिल्ली पुलिस

कभी कूड़े पर राजनीती हो रही थी, अब राजनीती में कूड़ा हो गया है यहाँ;
देश का दिल कहते हैं इसको , ये है दिल्ली मेरी जान। 

दिल्ली की ७० विधानसभा सीटों में से ६७ सीटों का प्रचंड बहुमत पाकर इतिहास बनाने वाली और सत्ता में कदम रखने वाली आम आदमी पार्टी को ऐसे दिन की कभी कल्पना भी नहीं होगी, पर पिछले कुछ दिनों से जो दिल्ली में हो रहा है उससे कौन वाकिफ नहीं है। जनता की भलाई के नाम पर जनता की ही आवाज को दबाया जा रहा है और सब अपनी-अपनी राजनीती की रोटियां सेकने में लगे हुए हैं। जनता के नाम पर सब अपने अधिकारों की लड़ाई कर रहे हैं और जनता सिर्फ तमाशगीन बनी बैठी है। दो साल पहले अस्तित्व में आई पार्टी  हर दिन एक नए  घिर जाती है, शायद इतने विवाद तो पुरानी पार्टियों में इतने सालों में नहीं हुए या यूँ कहें की उजागर नहीं होने दिए पर। पर हर समय जनता के नाम पर अपनी राजनीती करने वाले नेता शायद भूल जाते हैं कि ५ साल बाद उन्हें फिर जनता के बीच ही जाना है।

दिल्ली में केजरीवाल सरकार के पीछे पहले केंद्र फिर उप-राज्यपाल और अब दिल्ली पुलिस हाथ धो कर पीछे पड़ी हुई है। मुझे ये कहते समय हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी का दिल्ली चुनाव से पहले दिया वो भाषण याद आता है जिसमें उन्होंने कहा था कि ' दिल्ली को स्थिर बनाना है तो केंद्र और राज्य की सरकार  एक ही पार्टी की होनी चाहिए ' , पर जनता ने उनके इस कथन को सिरे से नकार दिया और दिल्ली में स्थिर सरकार बनाने के लिए केजरीवाल को प्रचंड बहुमत दी। पर शायद जनता उस भाषण के पीछे छुपे भाव को नहीं समझ पायी और कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली की जनता उसकी कीमत चुका  रही है। आजतक हमने इतने सालों में उप-राज्यपाल का दिल्ली में इतना हस्तछेप नहीं देखा जितना इन ३-४ महीनों में देखने को मिल रहा है।

सब अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं पर जनता के अधिकार का क्या। अब दिल्ली पुलिस भी केजरीवाल सरकार के मंत्रियों के पीछे पड़ी हुई है और २१ लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने वाली है, उनका कहना है कि इन मामलों में जल्द से जल्द कार्यवाही करने की जरुरत है। मैं ये नहीं कहता की चार्जशीट मत बनाओ या कार्यवाही नहीं होनी चाहिए पर क्या दिल्ली पुलिस को ये ज्ञात नहीं है कि हमारे लोकसभा और राज्यसभा में २०० से ऊपर सदस्य ऐसे हैं जिनपर न जाने कब से अपराधिक मामले दर्ज हैं और कोई चार्जशीट बनाने की जल्दी नहीं है।
फिर क्यों सबको दिल्ली सरकार के मामले में ही अपना फ़र्ज़ और अधिकार याद आता है। मुझे किसी राजनीतिक पार्टी से कोई हमदर्दी नहीं है, पर जिस तरह से दिल्ली में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ रही हैं उससे जो भी इस देश का जागरूक नागरिक है वो कहीं न कहीं आहत जरूर होता होगा। जिस तेज़ी के साथ जीतेन्द्र तोमर के केस में कार्यवाही हुई है उससे हर नागरिक का सीना जरूर चौड़ा होता है कि हमारे देश की पुलिस कितनी सक्षम है पर क्यों केंद्र सरकार के नेताओं पर उसी तेज़ी से कार्यवाही नहीं की जा रही।  ये दोहरा पैमाना शक करने पर मज़बूर करता है कि दिल्ली पुलिस भी राजनीती से प्रेरित होकर काम कर रही है।

गलतियां सब से होती हैं पर केजरीवाल ऐसे पहले नेता हैं जो अपनी गलतियां सबसे पहले सुधारते हैं और फिर लोगों से माफ़ी भी मांगते हैं, और यही कारण है कि मोदी लहर के बावजूद दिल्ली की जनता ने उन्हें अपनी सर-आँखों पर बैठाया। अभी कुछ दिन पहले ही जब दिल्ली की सड़को पर कचरे का ढेर लगा था तब  केजरीवाल सरकार ने कुछ गलतियां की जैसे हड़ताल ख़त्म होने के बाद पार्टी के लोग सफाई करने सड़कों पर उतरे जिसमें कहीं न कहीं राजनीती की बू आती है क्योंकि अगर सिर्फ जनता की भलाई उनका उद्देश्य होता तो १२ दिनों तक कचरे का अम्बार नहीं लगता बल्कि पहले ही दिन से उन्हें अपने कार्यकर्ताओं को सफाई के लिए लगा देना चाहिए था। पर जनता ने ये भी देखा की जो उप-राज्यपाल हमेशा अपने अधिकारों की दुहाई देते नहीं थकने इस पूरे प्रकरण में कहीं नज़र नहीं आये , तो जनता समझदार है कि  कौन उनके साथ खड़ा है और कौन अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहा है। तोमर प्रकरण में भी सब केजरीवाल पर ऊँगली उठा रहे हैं पर जैसे ही मामला साफ़ हुआ केजरीवाल ने उसे हटाने में देरी नहीं की पर जिस तरह से बीजेपी दोषियों को बचाने में लगी हुई है ये अब किसी से छुपा नहीं है।

दिल्ली पुलिस जो आज अपने फर्ज की दुहाई दे रहा है और सिर्फ केजरीवाल सरकार के पीछे पड़ी है शायद भूल गयी है "मनोज वशिष्ट एनकाउंटर " जिसमें उसकी स्पेशल टीम शक के घेरे में है।  चार जाँच कमिटी  बन गयी है पर मामला कहाँ दबा पड़ा है ये न हमारे गृहमंत्री  पाएंगे न दिल्ली पुलिस।  क्यों उस रेस्टोरेंट में इतने कैमरे होने के बावजूद सिर्फ वही वीडियो सार्वजानिक किया गया जिसमें कुछ साफ़ नहीं था।  अगर दिल्ली पुलिस का ऐसा दोहरा पैमाना रहेगा तो कैसे कोई देश के कानून  विश्वास करेगा।

अगर सबको जनता की इतनी फ़िक्र है तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा क्यों नहीं दिया जा रहा जबकि दोनों सरकारों के पास पूर्ण बहुमत है।  एक नयी  पार्टी जिसका मुद्दा भ्रस्टाचार हटाना है क्यों उसके हाथ बांधे जा रहे हैं। सब संविधान की दुहाई देते हैं  पर कोई ये क्यों नहीं समझना चाहता कि संविधान लोगों की भलाई के लिए बना है, अपने अधिकारों की लड़ाई  नहीं। अगर कोई नयी शुरुआत करना चाहता है और जनता भी जब उसके साथ है तो फिर ऐसी अड़चने पैदा करके सब जनता से किस बात का बदला ले रहे हैं। ऐसा करके उनकी सोच यही बताती है की एक बार बहुमत मिल गयी फिर अगले ५ साल तक जनता की क्या जरुरत है, पर सब ये भूल जाते हैं जनता ही जनार्दन है और वो सब देख रही है बस अंतर इतना है पहले कोई आवाज नहीं उठाता था पर अब धीरे-धीरे देश बदल रहा है। अगर इसे आपलोग विकास की राजनीती कहते हैं तो शायद ही कोई होगा जो ऐसा विकास देखना चाहता होगा। नेता जनता को भूली तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा पर जिस दिन जनता नेता को भूल गयी वो सीधे धरातल पर गिरेगा।

मैं ये जानता हूँ कि इस लेख के बाद सब बोलेंगे की मैं आम आदमी पार्टी से प्रेरित हूँ , पहले लेख के बाद किसी ने मुझे फेसबुक पर कहा की कांग्रेसी हो पर मैं किसी राजनितिक पार्टी का पक्षदार नहीं हूँ।  हमारे देश की यही विडम्बना है की यहाँ जनता को आवाज उठाने का हक़ नहीं है सिर्फ राजनेता ही आवाज उठा सकते हैं और मैं इसी सोच को बदलना चाहता हूँ और तब-तब मेरी आवाज उठेगी जब-जब जनता के साथ धोका होगा।

बहुत मुश्किल हैं जिंदगी के ये रास्ते, यहाँ हर कदम पर काँटे ही काँटे मिलेंगे;
अगर दिल में अरमान हो कुछ कर गुजरने का तो फूल भी तो काँटो में ही खिलेंगे। 

                                                   

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Thursday, June 18, 2015

कानून से नहीं, नसीब और खोखली दलीलों से चल रही है सरकार




बदनसीब है वो देश जिसका प्रधानमंत्री देश के विकास के लिए अपने नसीब की दुहाई देता हो,
बदनसीब है वो देश जिसकी संसद में दागी नेता हो;
बदनसीब है वो देश जिसमे पत्रकार अपनी आवाज उठाने के एवज में अग्निपरीक्षा देता हो,
और बदनसीब है वो देश जहाँ इतना कुछ होने पर भी प्रधानमंत्री चुप्पी साधे बैठा हो। 


आज जब ललित मोदी प्रकरण में हर दिन एक नया  खुलासा हो रहा है और जिस प्रकार हमारे देश के बड़े बड़े नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं, तो इस देश का हर जागरूक नागरिक यही सोच रहा होगा कि क्या हमारे देश में कानून का कुछ महत्व रह गया है या नहीं या फिर कानून सिर्फ कुछ राजनेताओं के हाथ की कटपुतली मात्र बन कर रह गया है। जिस इंसान की जगह आज भारत के किसी जेल में होनी चाहिए, वो शान के साथ समुद्र किनारे विदेश में बैठकर इंटरव्यू दे रहा है और  हमारे देश के कानून की धज्जियाँ उड़ा है।

अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब बीजेपी सरकार एक साल के कामकाज का  डंका पीट रही थी और पारदर्शिता की बातें कर रही थी।  पर क्या यही पारदर्शिता है हमारे सरकार की जो एक कानून की नज़र में भगोड़े की चुपचाप मदद कर देता है और देश की १२५ करोड़ जनता को इसका पता भी नहीं चलता। वो तो भला हो ब्रिटिश मीडिया का जिसके कारण ये मामला उजागर हुआ और अब इसकी परतें खुलनी चालु हुई हैं, नहीं तो पता नहीं ये मामला उजागर भी होता भी या नहीं। पर अभी भी हमारी सरकार दोषियों को बचाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है और अपनी खोखली दलीलों से जनता को बरगलाने की कोशिश कर रही है।

बीजेपी के नेता बोल रहे हैं कि  सुषमा स्वराज ने ललित मोदी की मदद मानवता के आधार पर की और इससे सिर्फ उनकी पत्नी को फायदा पंहुचा, ललित मोदी को नहीं,  पर ये कहते समय शायद वो भूल जाते हैं की सुषमा स्वराज को मदद के लिए मेल ललित मोदी ने किया था उनकी पत्नी ने नहीं। अगर ऐसे ही झूठी  दलीलों से वो अपनी गलतियाँ  छुपाते रहेंगे तो वो एक तरह से सारे अपराधियों के लिए बचने का बहुत ही सुनहरा रास्ता खोल रहे हैं।

दुनिया का कोई भी आदमी ये बता सकता है की कैंसर का इलाज  पुर्तगाल से बेहतर इंग्लैंड में हो सकता है पर शायद हमारी विदेश मंत्री इस बात से अनभिज्ञ थी। सबसे हास्यास्पद  बयान तो ललित मोदी ने तब दिया जब  उसने कहा की वो ऐसा क्रांतिकारी ऑपरेशन था कि ऑपरेशन के तुरंत बाद इंसान उठकर डिनर टेबल पर जा सकता है। अगर ऐसा है तो मैं अपनी सरकार से ये अपील करना चाहता हूँ की तुरंत  बिना कोई समय गवाए एक डॉक्टर की टीम पुर्तगाल के उस रिसर्च इंस्टिट्यूट भेजी जाए ताकि वो वहां ऐसे क्रांतिकारी इलाज को सीखें ताकि  हमारे देश में कैंसर पीड़ितों को इसका फायदा मिल पाये और वो भी ऐसी जानलेवा बीमारी से जल्द से जल्द निजात पा पाएं और अपने परिवार के साथ छुटियाँ बिता पायें।

हमारे देश के प्रधान मंत्री जो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम होने पर स्टेज से अपने अच्छे नसीब की हुँकार भरते नहीं थकते थे पर  आज अपनी बदनसीबी पर क्यों चुप्पी साध कर बैठे हैं ये पुरे देश की समझ से बाहर है।  आज भी रोजाना वो ट्वीट करके योगा का एक नया आसान बताना नहीं भूलते पर इन सारी बातों पर उनका कोई बयान नहीं आता। पर मैं उनसे ये पूछना चाहता हूँ योगा करके लोगों को मन की शान्ति तो मिल जायेगी पर जब तक देश में अशांति रहेगी तो लोग मन  की शान्ति का क्या करेंगे। आप काला धन लाने की बात करते नहीं थकते और दूसरी ओर आपके मंत्री काला धन रखने वाले लोगों को बचाने की हर संभव कोशिश करते नहीं थकते। क्या आप अपना चुनावी वादा भूल चुके हैं " बहुत हुआ भ्रष्टाचार, अबकी बार मोदी सरकार" या फिर वो भी १५ लाख वाले वादे की तरह सिर्फ चुनावी जुमला था।

ये हमारी मीडिया की भी नाकामयाबी है कि हमारे यहाँ से हो रही भ्रस्टाचारियों की मदद का खुलासा हमें दूसरे देश की मीडिया के खुलासे से पता चलता  है और उसके बाद सब उस मुद्दे को तूल देते हैं।  हमारी जनता की ख़ामोशी भी इसमें मददगार है जो सिर्फ  चुनाव में वोट देना ही अपना फ़र्ज़ समझते हैं और फिर अगले ५ साल तक तमाशगीन बने देखते रहते हैं। अब समय आ गया है की हमें अपने वोट के महत्व को समझना पड़ेगा और सरकार से उनके वादों का जवाब मांगना होगा नहीं तो हर समय हमारे लोकतंत्र और कानून का ऐसे ही मज़ाक बनता रहेगा और हम सिर्फ अफ़सोस ही करते रह जाएंगे।

                                                   जय हिन्द !!!!!!



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Tuesday, June 16, 2015

मोदी सरकार में आये ललित मोदी के अच्छे दिन

अच्छे दिन का वादा  करके सत्ता में आने वाली 'मोदी सरकार ' अभी तक देशवासियों के लिए तो अच्छे दिन नहीं ला पायी है पर कुछ लोगों के अच्छे दिन जरूर आ गए हैं, जिसमे सबसे नया मामला ललित मोदी का है। ललित मोदी को तो हम सब जानते हैं और उनपर लगे आरोपों से भी सब वाकिफ हैं, जिसमें ७०० करोड़ के गबन, फेमा का उल्लंघन जैसे आरोप शामिल हैं और वो प्रवर्तन निदेशालय (E.D) की नज़र में देश के भगोड़े हैं। २०१० से ही वो देश से बाहर ब्रिटेन में रह रहे हैं और E.D ने उनके नाम का ब्लू कार्नर नोटिस भी जारी किया हुआ है। अब हमारे देश की विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज उनकी मदद करने के कारण विपक्ष के निशाने पर हैं, जिनपर आरोप है की उन्होंने अपने पद का गलत इस्तेमाल किया और एक आरोपी को यात्रा करने के दस्तावेज़ लेने में मदद की जिसके कारण वो ब्रिटेन के बाहर जा सके। 

पहले ललित मोदी पर ब्रिटेन से कहीं भी बहार जाने पर पाबन्दी थी और उसका कारण था U.P.A  सरकार का एक सर्कुलर।  पर संडे टाइम्स के हवाले से आई रिपोर्ट से पता चला की किस तरह ललित मोदी ने सुषमा स्वराज से मदद मांगी और कहा कि  उन्हें पत्नी के कैंसर ऑपरेशन के लिए पुर्तगाल जाना है पर उसे पिछले सर्कुलर के कारण जरुरी दस्तावेज नहीं मिल रहे हैं क्यूंकि इससे दोनों देश के द्विपक्षीय  रिश्तों पर असर पड़ेगा। इसपर सुषमा स्वराज ने वहां के एक M.P  कीथ वाज़  से बात की और कहा अगर ब्रिटिश कानून के मुताबिक उन्हें जरूरी दस्तावेज़ दिए जा सकते हैं तो उससे हमारी सरकार को कोई दिक्कत नहीं है और इसके २४ घंटे के अंदर उसको सारे दस्तावेज़ मिल गए।

अब सारा मामला सामने आते ही पूरा विपक्ष मोदी सरकार को घेरने में लग गया है और सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग कर रहा है और पूरी सरकार और उसके सहयोगी दल सुषमा स्वराज के साथ खड़ा नज़र आ रहा है। सुषमा स्वराज ने ट्वीट करके कहा है की उन्होंने जो कुछ भी किया वो मानवीयता के आधार पर किया क्योंकि ललित मोदी को पत्नी के ऑपरेशन के लिए इस्तांबुल जाना जरुरी था। बीजेपी के सारे मंत्री उनके इस फैसले को सही करार दे रहे हैं और कह रहे हैं कि किसी व्यक्ति की मानवीयता के आधार पर मदद करना कोई अपराध नहीं है।  पर शायद हमारे देश के नेता सत्ता में आने के बाद अपनी ही कही बातों से मुकर जाते है और ये भी नहीं सोचते इससे देशवासियों की उमीदों का क्या जिससे सरकार बड़े बड़े वादे करके वोट मांगते हैं और फिर अपनी ही बातों से मुकर जाते हैं।

अगर बात सिर्फ मानवीयता की होती तो  क्यों किसी को कोई दिक्कत आती पर यहाँ किसी अपराधी को फायदा पहुचाने की बात है जिसे मानवीयता की आड़ में छुपाया जा रहा है।  कुछ तथ्य ऐसे भी सामने आये हैं जिससे ये पता चलता है की सुषमा स्वराज के और उनके परिवार के ललित मोदी के साथ पुराने रिश्ते हैं। कुछ ऐसे इ-मेल भी सामने आये हैं जिसमें स्वराज कौशल (सुषमा स्वराज के पति ) ने अपने भतीजे के एडमिशन के लिए ललित मोदी  की मदद ली थी। सारे इ-मेल इस  लिंक पर क्लिक करके  देखे जा सकते हैं  http://t.co/R3dExQEp23

अगर सारी  कड़ियों को जोड़कर देखा जाए तो ये सिर्फ मानवीयता के आधार पर किया हुआ फैसला नज़र नहीं आता और साफ़ नज़र आता है की ये फैसला संवैधानिक रूप से बिलकुल गलत है और कानून को पूरी तरह से नज़रअंदाज़  किया गया है। हर जागरूक नागरिक आज यही जानना चाहता है कि :

  1. क्या सुषमा स्वराज को ललित मोदी पर चल रहे केस का पता नहीं था जबकि उनकी बेटी खुद ललित मोदी के वकीलों की टीम में हैं। 
  2. क्या कोई अपराधी सीधे हमारे देश के विदेश मंत्री को फ़ोन कर सकता है , और हमारी विदेश मंत्री बिना किसी से बताये उसकी मदद कर सकती हैं। 
  3. जब ललित मोदी पर E.D  ने इतने आरोप लगाये हैं तो क्या सुषमा जी को फैसला लेने से पहले E.D से बात  चाहिए थी। 
  4. अगर मानवीयता के आधार पर फैसला लिया गया तो देश के १२५ करोड़ लोगों को अभी तक क्यों अँधेरे में रखा गया और क्यों उसी वक्त इसको सार्वजानिक नहीं किया गया।  
  5. अगर ब्रिटिश मीडिया से ये खबर निकल कर नहीं आती तो  और कब तक इस बात को छुपाया जाता। 
  6. अगर सिर्फ मानवीयता के आधार पर ये फैसला था तो क्यों नहीं ललित मोदी को ऑपरेशन के बाद समर्पण करने को कहा गया। 
  7. क्यों यात्रा दस्तावेजों को सिमित समय के लिए ही देने को नहीं कहा गया और दो साल का वीसा मिला ललित मोदी को जिसके कारण वो कहीं भी आ जा सके। ( अभी भी वो वेनिस में हैं )
  8. क्या सुषमा जी अपना २६ फरवरी २०१० को संसद में दिए अपने भाषण को भूल गयी थी जिसमे उन्होंने भ्रस्टाचारियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्यवाही की मांग की थी। 


और भी बहुत सारे सवाल मन में आते हैं जिससे सरकार के दोहरे पैमाने का पता चलता है। हमारे देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह  सबसे पहले सुषमा जी के  बचाव में आये और उनके फैसले को बिलकुल सही बताया, पर क्या वो  ये बता सकते हैं कि एक आदमी जो देश के कानून में दोषी है उसके साथ मानवीयता तो दिखा दी आपने पर जब कश्मीर के बाढ़ पीड़ितों को मुआवजे के नाम पर Rs 47  से Rs 300 दिए जाते हैं तब आपको मानवीयता याद नहीं आती।  या फिर जब उत्तर प्रदेश में किसी पत्रकार को जिन्दा जल दिया जाता है तब मानवीयता भूल जाते हैं आप।  क्या आपको इन मामलो में दखल देने की जरुरत नज़र नहीं आती जब ये खबर न्यूयॉर्क के अखबारों तक पहुंच चुकी है। अगर मानवीयता दिखानी है तो यहाँ दिखाइए क्योँकि ये लोग मासूम हैं और इन्साफ मांग रहे हैं।

अमित शाह जी भोपाल गैस त्रासदी का नाम लेकर इस अपराध को छुपा नहीं सकते क्यूंकि दूसरों के कीचड़ से कभी अपना कीचड़ साफ़ नहीं होता बल्कि और गन्दगी ही बढ़ाता है। क्या आप लोगों अभी भी कांग्रेस की गलतियां ही गिनवाते रहेंगे या फिर कुछ विकास का काम भी करेंगे जिसके लिए जनता ने आपकी पार्टी को चुना है।  कांग्रेस को अपनी गलतियों की सजा मिल चुकी है इसीलिए वो आज सत्ता के बाहर है। गलतियां गिनने का काम जनता पर छोड़िये क्यूंकि फिर कांग्रेस के पास भी ऊँगली उठाने के लिए गोधरा और कंधार जैसे बहुत मसले हैं। इसीलिए आप ऐसा करके दूसरों के लिए आगे गलती करने का रास्ता खोल रहे हैं।

सबसे आखिर में हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी जो अभी तक इस मसले पर चुप्पी साधे  बैठे हैं जबकि छोटी से छोटी बात पर भी उनका बयान जरूर आता है कृपया ये बताने का कष्ट करेंगे की क्या आज हमारे देश को ७०० करोड़ की जरुरत नहीं है या फिर जैसे हमारे देश में ५० करोड़ की गर्लफ्रेंड हो सकती है वैसे ही ७०० करोड़ (गबन का पैसा ) का फैमिली फ्रेंड भी हो सकता है। या फिर आज हमारा देश इतना अमीर हो गया है की उसे ७०० करोड़ की जरुरत  नहीं है। आज हमारे देश में जब किसान क़र्ज़ के कारण आत्म हत्या कर रहे हैं तो ये ७०० करोड़ से हम ७०००० लोगों की १-१ लाख की मदद तो कर ही सकते हैं या यहाँ मानवीयता का तकाजा आपकी सरकार को नज़र नहीं आता। क्या यही है आपके अच्छे दिन का वादा।

                                                          जय हिन्द !!!!!



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